ज्योतिष के कुछ योग
वैसे तो ज्योतिष में इतने योग हैं की अगर उनकी चर्चा करू तो पूरी कीताब ही बन जाएगी पर कुछ बाते बताने का मन कर रह था तो ये आलेख लिख रहा हूँ ९ ग्रहों की विभ्हीन भावों और राशियों में स्थिती अनेक योगो का निर्माण कराती हैं यह भी आवश्यक नहीं की योग में २ या अधीक ग्रह हो कई बार देखने में आया हैं की केवल एक ग्रह से भी योग बन जाता हैं मंगल बुध गुरु शुक्र व् शनी यदी अकेले या अपनी उच्च राशी में केंद्र में स्थित हो तो भी अलग अलग नाम वाले पञ्च महा पुरुष योग का निर्माण हो जाता हैं इसी प्रकार यदी केंद्र का स्वामी केंद्र में या त्रिकोण में हो या ८वे स्थान का स्वामी ६थे या बहरवे भाव ६थे का स्वामी आठवे या बहर्वे भाव में स्थित हो तो एक ग्रह भी राज योग का निर्माण कर सकता हैं बाकी जन्हा राज योग होते हैं वन्ही राज भंग योग भी होते हैं राज भंग योग के बारे में फिर कभी यदी सभी ग्रह एक ही भाव में हो तो गोल योग और सात ग्रह सात घरो में एक के बाद एक हो तो वीणा योग होता हैं , केवल चार ग्रह दशम भाव में हो तो जातक को सन्यासी भी बना देते हैं ये मेरे अनुभव में आया हैं वैसे थोडा सा अंतर होने पर परिणाम में भी पर्याप्त अन्तर आ जाता है इस लिए छमा चाहता हूँ क्यों की देश काल और समय के अनुसार परिणाम भी बदलते रहते हैं वैसे योग कुयोग भी हो सकते हैं और सुयोग भी इस सब की विवेचना ज्योतिषी की ज्ञान अनुभव और गुरु कृपा पर निर्भर होता हैं निरंतर अध्यन से और कुंडलियों के विवेचन से भी ये छमता बढाती हैं यंहा एक बात कहना चाहूँगा की चपरासी की नोकरी भी राज योग हैं और प्रधान मंत्री की कुर्सी भी राज योग हैं तो राज योग का मतलब अलग अलग ही होता हैं निर्भर करता हैं कुंडली में स्थित योगो पर
इती शुभम
वीनोद रांका
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